दिल्ली में होगा छत्तीसगढ़ के पारंपरिक कला का प्रदर्शन।

छत्तीसगढ़ के लोक कला, दिल्ली में होगी प्रदर्शित

विजय सेन/लाहोद l समीपस्थ ग्राम पंचायत सकरी के एक साधारण किसान कुलेश्वर वर्मा की बेटी शीलमणी वर्मा द्वारा छत्तीसगढ़ के पारंपारिक चित्रकाला को दिल्ली में आयोजित होने वाली ” द हाट ऑफ आर्ट ” प्रदर्शनी जो दिनांक 26 जुलाई से 28 जुलाई तक आयोजित होगी उसमें प्रदर्शित करेगी l शीलमणी वर्मा द्वारा बनायीं जाने वाली चित्रकाला में गोंड आर्ट ,मंडला आर्ट जो शांति का प्रतीक है, पिछवाई व माडर्न अब्स्ट्रैक्ट पेंडिंग भी शामिल परंतु इनका लगाओ गोंडचित्र कला में अधिक है वह बच्चो को भी लोक चित्र कला बनाना सिखाती हैlछत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला आकृति जो गोंड कला के नाम से प्रचलित है। गोंड कला चित्रकला आदिवासी कलाकृति का एक आकर्षण और जीवंत रूप है जो इस जनजाति की रहन सहन की खुली किताब है गोड जनजाति भारत की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी जन- जातियों में से एक है।

समृद्ध इतिहास और अनूठी संस्कृति के साथ एक पारंपरिक आदिवासी कला रूप है गोंड कला की उत्पत्ति दीवारों की सजावट से हुई है जिसे वे अपने घर में अपने दैनिक जीवन के हिस्से के रूप में बनाते थे l *जानिये गोंड कला की विशेषता* :- गोंड कला की विशेषता पौराणिक और लोककथाओं से जुड़ी है जिसमें प्रकृति और जीव-जंतु की आकृतियां को चटकारे रंगो से बनाते है और प्रत्येक आकृति को सूक्ष्मता से भरने वाले पैटर्न धरियों व छोटी छोटी बिंदु से सजाया जाता है।*जानिये शीलमणी वर्मा द्वारा क्या कहाँ गयाः*- गोंड चित्रकला छत्तीसगढ़ की जीवनशैली का एक प्रमुख अंग है आधुनिक जमाना में हम देख रहे है धिरे-धीरे हमारे छत्तीसगढ़ की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। पहले प्रत्येक घर में यह कलाकृति की छवि देखने को मिलती थी जो आज नहीं दिखती है इसी परंपरा को पुनः जगाने व आने वाली पीढ़ी को लोक कला की सरलता और सौंदर्य को बताने का यह एक छोटा सा प्रयास है ,मेरा आप सभी से आग्रह है कि सभी दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने वाली प्रदर्शनी को देखने अवश्य आए l